ग्राम सभा में युवा नेतृत्व, बदल रही गांव की तस्वीर
- Gunjal Ikir Munda
- Mar 22, 2023
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पश्चिम सिंहभूम जिला के मनोहरपुर प्रखंड में स्थित है कसेयापेचा गाँव। मनोहरपुर प्रखंड संविधान की पाँचवी अनुसूची के अंतर्गत आता है इसीलिए इस क्षेत्र में गाँव की शासन प्रणाली पेसा कानून के तहत संचालित होती है जिसमें कि ग्राम सभा को सर्वोपरी माना गया है। यह पूरा क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ है जो कि एशिया का सबसे बड़ा साल का जंगल – सारंडा के नाम से जाना जाता है। साथ ही इस क्षेत्र में लौह अयस्क के कई बड़ी खदाने मौजूद है जिसके नकारात्मक पक्ष के रूप में पर्यावरण की क्षति, स्वास्थ समस्याएँ एवं सांस्कृतिक विघटन इत्यादी चीज़ो से लोगों को जूझना पड़ रहा है। जितना सशक्त इन इलाकों ने देश की आर्थिकी को किया है शायद उसका कर्ज हम इन इलाकों को चुका नहीं पाए हैं, नतीजातन इन इलाकों मे शिक्षा, स्वास्थ, सिंचाई, सड़क, पेयजल इत्यादी सुविधाओं का भारी आभाव है। इन सभी मुश्किलों के बावजूद प्रखंड मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर, कसेयापेचा गाँव में व्याप्त जन-जागरूकता एवं सामाजिक संगठन देखते ही बनता है – और इसका सीधा श्रेय जाता है यहाँ पर नियमित होनी वाली गाँव वालों की बैठक यानी ग्राम सभा को।

कसेयापेचा ‘हो’ आदिवासी बहुल गाँव है और यहाँ पर पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था वर्षों से चली आ रही है। उसी व्यवस्था का विस्तार है यहाँ पर नियमित होने वाली ग्राम सभा जिसके अध्यक्ष एवं हातु मुण्डा (पारम्परिक मुखिया) नन्दलाल सुरिन हैं। आमतौर पर अन्य गाँवों मे ग्राम सभा को सरकारी योजना मात्र लागू करने वाली एजेंसी के रूप में देखा जाता है जो कि गलत है लेकिन इस गाँव में ग्राम सभा को गाँव वाले गाँव की ही मूलभूत संगठन के रुप में देखते हैं और यहाँ पर सरकारी योजनाओं के अलावा गाँव की अखंडता एवं खुशहाली से जुड़ी सारी बातों पर विमर्श होता है।
यहाँ पर ग्राम सभा करने की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती है – गाँव से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण विषय को सूचीबद्ध कर सभी गाँव वालों को तीन दिन पूर्व सूचना दी जाती है कि इन विषयों पर इस दिन बातचीत होगी। तय दिन सभी लोग ग्राम सभा में हिस्सा लेते हैं एवं अपना-अपना विचार रखते हैं। सभी के विचारों को सम्मिलित कर ग्राम सभा कोई ठोस निर्णय पर पहुँचती है और आगे की प्रक्रिया हातु मुण्डा/ ग्राम सभा अध्यक्ष के दिशा-निर्देश एवं जिम्मेदारी में होता है। इस दौरान सभी विचार एवं निर्णयों का लिखित दस्तावेज़िकरण ग्राम सभा द्वारा अपने रजिस्टर में किया जाता है जिसपर सभी गाँव वाले हस्ताक्षर करते हैं।
ये सारी प्रक्रिया देखने में भले ही गौण लगे परन्तु इसके जरिए गाँव वाले सरकार एवं प्रशासन से वार्तालाप, सरकारी योजनाओं का अपनी जरूरत के अनुसार क्रियान्वयन, गाँव की अखंडता एवं जागरुकता बना कर रखना एवं गाँव वालों का समुचित विकास कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर गाँव के ही मंगता सुरिन बताते हैं – इस गाँव मे जब बिजली आई तो वह मात्र एक महीना चला और फिर वह ठप पड़ गया लेकिन फिर भी अगले दो साल तक बिल आता रहा। फिर लोगों ने ग्राम सभा के जरिए इसकी लिखित शिकायत बिजली विभाग को दी तो मात्र तीन दिन में विभाग ने कर्मचारियों को वहाँ भेज कर बिजली की मरम्मत की। तीन और चिट्ठियाँ लिखने पर बिजली के गलत बिल को भी सुधार दिया गया। इसके अलावा पूर्व में बिजली के खंभों को गाड़ने के दौरान जो अनियमितताए हुई थी उसकी भी शिकायत ग्राम सभा द्वारा किया गया तो उसे भी सुधार दिया गया। इसके साथ-साथ ग्राम सभा द्वारा गाँव में पी.सी.सी. सड़क का निर्माण एवं एक चेक डैम का निर्माण भी कराया गया है।
इस ग्राम सभा की एक और उपलब्धी यह है कि उसने इस गाँव में ड्रिस्ट्रिक्ट मिनिरल फाउंडेशन ट्रस्ट (डी.एम.एफ.टी.) मद से नये स्कूल भवन का निर्माण करवाया है। डी.एम.एफ.टी. मद को माइन्स एंड मिनिरल्स (डेवेलपमेंट एंड रेगूलेशन) अमेंडमेंट ऐक्ट 2015 के अंतर्गत स्थापित किया गया है जहाँ पर किसी जिले में कार्य कर रही खनन कंपनियाँ रॉयल्टी का कुछ हिस्सा जमा करती है। मद में जमा राशी को जिला प्रशासन नियमतः जिले के खनन प्रभावित क्षेत्रों में सर्वागीण विकास हेतू खर्च करती है जैसे कि – पेयजल, स्वच्छता, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ, कौशल विकास इत्यादी। चूंकि कसेयापेचा पश्चिमि सिंहभूम जिले में है जहाँ बहुतायत में लौह अयस्क का खनन किया जाता है, ऐसे खनन बहुल जिलों के लिए डी.एम.एफ.टी. मद से स्वास्थ एवं शिक्षा इत्यादी संबंधी चीज़ों की बेहतरी में खर्च किया जा रहा है। मंगता सुरिन बताते है कि - कसेयापेचा गाँव के लोगों ने ग्राम सभा के जरिए प्रखंड में डी.एम.एफ.टी. मद के प्रयोग से स्कूल भवन का आवेदन दिया था। बीच में इस मद के विषय में कई गाँवों को मिलाकर एक आम सभा भी हुई जहाँ इसके प्रयोग के बारे में जानकारी भी दी गई। कुछ दिन बाद खबर आई कि कसेयापेचा गाँव में स्कूल भवन के निर्माण को स्वीकृत कर दिया गया है। हातु मुण्डा नन्दलाल सुरिन कहते है कि स्कूल तो बन गया है लेकिन इसमे पाकशाला अभी बनाया जाना बचा है, इसके लिए ग्राम सभा के जरिए वे फिर सरकार को आवेदन लिखेंगे एवं ध्यानाकर्षण के लिए अखबारों में भी खबर पहुचाएँगे। नन्दलाल से पूछने पर कि वे क्यों स्कूल पर इतना ध्यान देते है, वे कहते है कि चूकिं शिक्षा सुविधा के आभाव में वे स्वयं ज्यादा नहीं पढ़ पाए, वे नहीं चाहते है कि गाँव के अन्य बच्चे-बच्चियों को ऐसा देखना पड़े और गाँव की खुशहाली के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग यहाँ शिक्षित रहें।
ग्राम सभा के जरिए सिर्फ सरकारी योजनाओं के बारे में ही जानकारी नहीं बढ़ी है बल्कि अपने हक और अधिकारों के प्रति भी लोग उतने ही सजग हुए हैं। गाँव वाले डी.एम.एफ.टी. मद को दया करने का जरिया ना मानकर अपने हक का हिस्सा मानते हैं। हातु मुण्डा के अनुसार गाँव की परीधि में मिलने वाले संसाधनों पर सबसे पहला हक गाँव वालों का है और इसी कारण खनन इत्यादी से होने वाले आर्थिक लाभ पर लोगों का उतना ही अधिकार है जितना कि कंपनी एवं सरकार का।
अब तक ग्राम सभा द्वारा प्रस्तावित 17 परियोजनाओं में से लगभग 13 स्वीकृत हो चुकी है जिसमें कि एक चेक डैम, स्कूल, सड़क इत्यादी शामिल है। ग्राम सभा के नियमित बैठने से मिली उर्जा एवं आत्मविश्वास से ही गाँव वाले अब सरकारी योजनाओं के मोहताज मात्र नहीं रह रहे बल्कि अपने भविष्य एवं सपने को संजोने का प्रयास स्वयं कर रहे हैं। हातु मुण्डा कहते हैं कि आगे गाँव वालों की इच्छा है कि यहाँ अगर स्नातक स्तरीय कॉलेज खुल पाए तो यहाँ के लोगों की शिक्षा के लिए बहुत सुविधा होगी और इसके लिए अन्य गाँव के लोगों के साथ मिलकर आम सभा भी की गई है। इसके अलावा गाँव के लोग खेती के नए स्वरूप जैसे कि तसर इत्यादी के खेती सीख रहे हैं जिससे कि वे और अधिक स्वालंबी रह सके। गाँव की इस यात्रा के अंतिम दिन हातु मुण्डा नन्दलाल सुरिन गाँव के अन्य लोगों को तसर रेशम की खेती के बारे में सिखाने की तैयारी कर रहे थे जिसे कि उन्होंने स्वयं सरायकेला जाकर सीखा था।
कसेयापेचा ग्राम सभा स्थानीय नेतृत्व एवं ग्राम संगठन के नये आयामों को गढ़ रहा है और उम्मीद है कि इस तरह के सफल संगठन से प्रेरित होकर अन्य इलाकों में भी लोग ग्राम सभा से उर्जा प्राप्त करेंगे।