#save_language विलुप्त होती भाषाएँ
- Abua Disum
- Jan 25, 2022
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अपनी भाषा अपनी बोली जिंदा है तभी परम्परा , संस्कृति , इतिहास , ज्ञान , पुरखे और पहचान जिंदा है ।
जो मैं बोलता हूं
वही मेरी पहचान है
जो खाता हूं
जो पहनता हु
जो गीत मैं गाता हूँ
जिन सुर तालों पर झूमता हूँ
वही मेरी पहचान है
भारतीय भाषा संस्थान ने भारत की 117 भाषाओँ की पहचान की है जो विलुप्त होने की कगार पर है| इन भाषाओँ को बोलने वाले 10 हज़ार से कम लोग बचे हैं| इनमें से अधिकांश भाषाएँ उन्ही क्षेत्रों में हैं जो जैव विविधता से परिपूर्ण है|
उतरी क्षेत्र में (पंजाब, हरियाणा, उतराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर) जो भाषाएँ विलुप्त होने वाली है वो है - रोंगपो, चिनाली, गाहरी, डारमिया, जाड, जंगली, कनाशी/मलाणी, जांगशुंग, स्पीती, भद्रालियम, खासा, सियान, तेहगुल, बलास्तींन, बातेरी, बेड़ा, खुशवाही, मासिदी, दरगारी, खाना, गोजापूरी, हासिदी, सिरम, पदारी, मेशाबी
उत्तर पूर्वी क्षेत्र में (अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा) एमोल, बाईते/बाएते, शिंज/जाईफ, चिरु, चौथे, दिरांग मोंग्पा, गुरुंग, कागते, कामी/खामी, कोइरेंग, कोंगबों, लामगांग, लिजू, मोयोन, मुखिया/सुनुवार, नेवार/प्रधान, ना, तान्गम, खामियांग, फाकियल, पुरोईक, सुलुंग, सिंगफो, शेरदुकपेन, मेयोर/जाखरिंग, रंगलॉन्ग, बागी, तराओ, बांगरों, थापा, खांबा, डारलोंग, कोमकर, सिमोंग, जाखरिंग, एटोंग, खाप्टी, उंचई, बाम, रालते, मारा, योबिन/योबिन लिजू
पश्चिमी केन्द्रीय जोन में (महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, गोवा, दादरा नगर हवेली, दमन दीव) : दिवेही, निहाली, बरादी, भाला, भारवाड/भारवाडी
दक्षिणी जोन (केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना) : मन्नन, टोडा, उराली, मुपन, मुडुगा, हक्कीपिक्की, कन्निकेर गोट्टी, जेनूकुरुबा, केदार, अरनदन, कुटिया, पालिया, मलयन, सिद्दी, सोलिगा, मालासर, मुदुवन, पुलिया, इरावल्लम, मलई, मालासर
पूर्वी केन्द्रीय क्षेत्र की भाषाएँ (बिहार, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, ओड़िशा) : थारुआ, धिमल, म्रू, बीरहोर, भुंजिया, बिंजियाँ/बिरजिया/बृजिया, बोडो, गाडाब/गुटोब, बोंडों, दिदाई/गाता, गुरुम, मांडा, थोटी, होलिया, परेंगा, टोटो
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह भाषाएँ : लामोंगीज, लुरो, मुओट, प्यु, सानिन्यों, ताकाहानयीलांग, आन्जें, सेंटीनेलीज, शोंपेन
श्रोत : केन्द्रीय भाषा श्रोत

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